Mahabharat top 10 shlok in Hindi with meaning




महाभारत में अनगिनत श्लोक ज्ञान के रत्न हैं, जिन्हें चुनना कठिन है। लेकिन, यहां अर्थ सहित महाभारत के 10 शीर्ष श्लोक प्रस्तुत हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं:


1.यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(जब-जब धर्म की हानि होती है, भारत, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूं।)

अर्थ: यह श्लोक भगवान के धर्म रक्षक स्वरूप को दर्शाता है। वे अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं।


2.कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(कर्म करने का अधिकार तेरा है, फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। कर्मफल का हेतु मत बन, कर्म में आसक्ति मत रखना चाहिए।)

अर्थ: यह श्लोक कर्मयोग का सार बताता है। हमें अपने कर्मों को निष्ठा से करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।


3.नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥

(इस आत्मा को कोई शस्त्र छेद नहीं सकता, कोई अग्नि जला नहीं सकती, कोई जल भिगो नहीं सकता, कोई वायु सुखा नहीं सकती।)

अर्थ: यह श्लोक आत्मा की अमरता को दर्शाता है। वह भौतिक दुनिया से परे, अविनाशी है।


4.धर्मो रक्षति रक्षितः।

(धर्म की रक्षा करने से ही धर्म रक्षा करता है।)

अर्थ: यह श्लोक धर्म के पालन के महत्व को बताता है। हमें धर्म का पालन करना चाहिए, तभी धर्म हमें बचाएगा।


5.क्रोधो ह्यग्निः परा तपति।

(क्रोध आग की तरह है, दूसरे को ही नहीं, खुद को भी जलाता है।)

अर्थ: यह श्लोक क्रोध के दुष्परिणामों को दर्शाता है। क्रोध हमें दूसरों को नुकसान पहुंचाता है, साथ ही खुद को भी नष्ट करता है।


6.क्षमा यस्य महाबलं तस्य विक्रमः॥

(जिसके पास क्षमा का महाबल है, वही असली वीर है।)

अर्थ: यह श्लोक क्षमा के महत्व को दर्शाता है। क्षमा किसी भी शक्ति से बड़ा बल है।


7.अनीतिः कर्मणां नास्ति।

(अनीति किसी भी कर्म में नहीं होनी चाहिए।)

अर्थ: यह श्लोक हमें हमेशा सही काम करने की सीख देता है। हमें कभी भी अनैतिक काम नहीं करना चाहिए।


8.विद्या धनं सर्वदा सुहृद् दुःखे विनश्यति यस्य।

(जिसकी विद्या और धन दुःख में मित्र बनकर साथ नहीं देते, वह व्यर्थ है।)

अर्थ: यह श्लोक हमें ज्ञान और अच्छे मित्रों के महत्व को बताता है। मुश्किल समय में ये ही सच्चे साथी होते हैं।


9.नष्टो मोहः स्मृतिर्गता।

(जिसका मोह नष्ट हो गया है और स्मृति जागृत हो गई है, वही सच्चा ज्ञानी है।)

अर्थ: यह श्लोक ज्ञान के मार्ग पर चलने का महत्व बताता है। हमें मोह को त्यागकर सच्चाई का अनुभव करना चाहिए।


10.जीवनं मृत्युवत्खेलं दुःखं सुखं स्वप्नचयः।

(जीवन मृत्यु का ही खेल है, दुःख और सुख स्वप्न के समान क्षणिक हैं।)

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