Sumitranandan Pant के अनमोल विचार Sumitranandan Pant Quotes in Hindi
1. हिंदी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत है।
2. जीना अपने ही मैं एक महान कर्म है।
3. यदि स्वर्ग कही है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर;
मादकता जग में अगर कहीं, वह नारी अधरों में डूबकर;
यदि कहीं नरक है इस भू, पर तो वह भी नारी के अंदर।
मादकता जग में अगर कहीं, वह नारी अधरों में डूबकर;
यदि कहीं नरक है इस भू, पर तो वह भी नारी के अंदर।
4. जीने का हो सदुपयोग यह मनुष्य का धर्म है।
5. वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान;
उमड़ कर आंखों से चुपचाप वहीं होगी कविता अनजान।
उमड़ कर आंखों से चुपचाप वहीं होगी कविता अनजान।
6. ज्ञानी बनकर मत नीरस उपदेश दीजिए।
लोक कर्म भाव सत्य प्रथम सत्कर्म कीजिए।
लोक कर्म भाव सत्य प्रथम सत्कर्म कीजिए।
7. वह सरल, विरल, काली रेखा तम के तागे सी जो हिल-डुल;
चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल।
चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल।
8. मैं मौन रहा,
फिर सतह कहां
बहती जाओ, बहती जाओ
बहती जीवन धारा में
शायद कभी लौट आओ तुम।
फिर सतह कहां
बहती जाओ, बहती जाओ
बहती जीवन धारा में
शायद कभी लौट आओ तुम।
9. मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोए थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे। रुपयों का कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल फलकर मैं मोटा सेठ बनूंगा। पर बंजर धरती में एक ना अंकूर...।
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे। रुपयों का कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल फलकर मैं मोटा सेठ बनूंगा। पर बंजर धरती में एक ना अंकूर...।