Tarun Sagar के अनमोल विचार Tarun Sagar Quotes in Hindi

                                 



1. पैर से अपाहिज एक भिखारी हमेशा प्रसन्न और खुश रहता था। किसी ने पूछा "अरे भाई! तुम भिखारी हो, लंगड़े भी हो, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है फिर भी तुम इतने खुश रहते हो"। क्या बात है? वह बोला, "बाबूजी! भगवान का शुक्र है कि मैं अंधा नहीं हूं भले ही मैं चल नहीं सकता, पर देख तो सकता हूं मुझे जो नहीं मिला मैं उसके लिए प्रभु से कभी कोई शिकायत नहीं करता बल्कि जो मिला है उसके लिए धन्यवाद जरूर देता हूं" यही है दुख में से सुख खोजने की कला।

2. पुत्र चार तरह के होते हैं। एक, लेनदार पुत्र- पिछले जन्म का लेनदार था पुत्र होकर गया। अब उसे पढ़ाओ, लिखाओ, युवा करो उसका लेनदेन पूरा होगा और वह  चल बसेगा। दूसरा, दुश्मन पुत्र- पिछले जन्म का दुश्मन भी पुत्र होकर आ जाता है। ऐसा पुत्र कदम-कदम पर दुख देता है। तीसरा, उदासीन पुत्र ऐसा पुत्र मां-बाप को ना सुख देता है ना दुख। बस कहने को पुत्र होता है। चौथा, सेवक पुत्र- पिछले जन्म में तुमने किसी की सेवा की, वही तुम्हारा पुत्र बनकर आ गया। ऐसा पुत्र मां-बाप को बड़ा सुख देता है।

3. दस गाय दान करना बड़ा पुण्य है। मगर इसे भी बड़ा पुण्य बूचड़खाने में जाती हुई एक गाय को बचा लेना। दस मंदिर का निर्माण करना बड़ा पुण्य है, मगर इससे भी बड़ा पुण्य एक प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार करना है। दस प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार करना पुण्य है, मगर इससे भी बड़ा पुण्य एक आतंकवादी को अहिंसावादी बना देना। अगर आप अपनी प्रेरणा से एक मांसाहारी व्यक्ति को शाकाहारी बना देते हैं तो समझना आपने घर बैठे ही चार धाम की यात्रा करने का पुण्य अर्जित कर लिया।

4. पड़ोसी होने का धर्म निभाइए। पड़ोसी धर्म क्या है? यही कि आप उनके यहां भोजन अवश्य करें, मगर इस बात का ख्याल रखें कि कहीं आपका पड़ोसी भूखा ना रह जाए। अच्छा पड़ोसी आशीर्वाद है। पड़ोसी के साथ कभी बिगाड़ न करें क्योंकि हम मित्रों के बिना तो जी सकते हैं लेकिन पड़ोसी के बिना नहीं। पड़ोसी के सुख दुख में सहभागी बने। क्योंकि पड़ोसी के घर में आग लगी है तो समझना तुम्हारी अपनी संपत्ति भी खतरे में है। और हां, अगर तुम आज पड़ोसी के यहां नमकीन भेजते हो तो कल वहां से मिठाई जरूर आएगी।

5. पुत्र तुम्हारी सेवा करें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वह तो करेगा ही क्योंकि वह आखिर तुम्हारा ही खून है लेकिन यदि पुत्रवधू सेवा करें तो यह आश्चर्य है। वह खून तो दूर खानदान तक का भी नहीं है... फिर भी सेवा कर रही है तो निश्चित ही यह तुम्हारे किसी जन्म का पुण्य फल है। आज के समय में और सब तरह के पुण्य भोगना बहुत सारे लोगों की किस्मत में है लेकिन पुत्र और पुत्र वधू की सेवा के पुण्य को भोगना विरले ही मां-बाप के भाग्य में है।

6. यदि कोई इंजीनियर भ्रष्ट होता तो कुछेक पूल, भवन ही असमय में धराशाई होते हैं। यदि कोई डॉक्टर भ्रष्ट होता है तो कुछेक ही लोगों की अकाल मौत होती है, लेकिन यदि कोई शिक्षक भ्रष्ट होता है तो आने वाली समूची पीढ़ी बर्बाद हो जाती है। देश का भविष्य आज शिक्षक के हाथ में है क्योंकि उसके द्वार पर ही नई पीढ़ी कुछ सीखने बैठी है।

7. दुख बड़ा ढीठ मेहमान है। अगर यह तुम्हारे घर के लिए निकल पड़ा है तो पहुंचेगा जरूर। अब अगर तुम इस मेहमान को घर आते हुए देख कर सामने का दरवाजा बंद कर लो तो यह पीछे के दरवाजे से आ जाएगा। पीछे का दरवाजा बंद कर लो तो यह खिड़की में से आ जाएगा। खिड़की भी बंद कर लो तो छप्पर फाड़कर नहीं तो फर्श उखाड़कर ही आ जाएगा। ढीठ मेहमान है ना! अतः जीवन में सुख की तरह दुख का भी स्वागत करो। दुख की मेजबानी के लिए तैयार रहो। ये सोचकर कि वह दिन नहीं रहे ,तो ये दिन भी नहीं रहेंगे।

8. जवानी पर ज्यादा मत इतराने, क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अतः कानों में बहरापन आवे, इससे पहले की जो सुनने जैसा है उसे सुन लेना। पैरों में लंगड़ापन आवे, इससे पहले ही दौड़-दौड़ कर तीर्थ यात्रा कर लेना। आंखों में अंधापन आवे इससे पहले ही अपने स्वरूप को निहार लेना। वाणी में गूंगापन आए, इससे पहले ही कुछ मीठे बोल लेना। हाथों में लूलापन आवेदन, इससे पहले ही दान-पुण्य कर लेना। दिमाग में पागलपन आवे, इससे पहले ही प्रभु के हो जाना।

9. कहा जाता है कि बच्चे पर मां का प्रभाव पड़ता है लेकिन आज बच्चा मां से कम मीडिया से ज्यादा प्रभावित हो रहा है। कल तक कहा जाता था कि यह बच्चा अपनी मां पर गया है और यह पाप पर। मगर आज जिस तरह से देसी विदेशी चैनल हिंसा और अश्लीलता परोस रहे हैं, उसे देख कर लगता है कि कल यह कहा जाएगा कि यह बच्चा जी टीवी पर गया है और यह स्टार टीवी पर और यह जो निखट्टू है ना, यह तो पूरे फैशन TV पर आ गया है। आज विभिन्न चैनलों द्वारा देश पर जो सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं, वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों के हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं।

10. अगर जिंदगी को स्वर्ग बनाने की तमन्ना है तो पति और पत्नी, सास और बहू, बाप और बेटे को आपस में यह समझौता करना होगा कि अगर एक आग बने तो दूसरा पानी बन जाएगा। अपने घरों में थोड़े से पानी की व्यवस्था करके रखिए पता नहीं कब किसके दिल में क्रोध की आग भड़क उठे। क्रोध आग है। अपने घरों में सहनशीलता और शांति का जल तैयार रखें। पता नहीं कब तुम्हारा घर क्रोध की लपट से गिर जाए। ध्यान रखो, पति कभी क्रोध में आग बने तो पत्नी पानी बन जाए और पत्नी कभी अंगार बने तो पति जलाधार हो जाये।

11. अगर आप बाप हैं तो आपका अपने बेटे के प्रति बस एक ही फर्ज है कि आप अपने बेटे को इतना योग्य बना दें कि वह संत मुनि और विद्वानों की सभा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठने का हकदार बने और अगर आप बेटे हैं, तो आपका अपने बाप के प्रति बस यही एक कर्तव्य है कि आप ऐसा आदर्श में जीवन जिए। जिसे देखकर दुनिया तुम्हारे बाप से पूछे कि किस तपस्या और पुण्य के फल से तुम्हें ऐसा होनहार बेटा मिला है?

12. जिंदा रहने के लिए भोजन जरुरी है। भोजन से भी ज्यादा पानी जरुरी है, पानी से भी ज्यादा वायु जरूरी है और वायु से भी ज्यादा आयु जरूरी है, मगर मरने के लिए कुछ भी जरुरी नहीं है। आदमी यूं ही बैठे-बैठे मर सकता है। आदमी केवल दिमाग की नस फटने और दिल की धड़कन रुकने से नहीं मरता, बल्कि उस दिन भी मर जाता है जिस दिन उस की उम्मीदें और सपने मर जाते हैं; उसका विश्वास मर जाता है इस तरह आदमी मरने से पहले भी मर जाता है; और फिर मरा हुआ आदमी दोबारा थोड़ी ना मरता है!

13. दो बातों का ध्यान रखें। एक, टीवी देखते हुए भोजन ना करें। दो, अखबार पढ़ते हुए चाय न पियें। आज के जीवन में ये दो जबरदस्त बुराइयां हैं। आप इन्हें अविलंब सुधार लें, क्योंकि जब आप TV देखते हुए खाना खाते हैं और अखबार पढ़ते हुए चाय पीते हैं तो आप सिर्फ खाना और चाय नहीं खाते-पीते, बल्कि उस टीवी और अखबार में हिंसा, अश्लीलता, भ्रष्टाचार की खबरें होती हैं, उन्हें भी खा पी जाते हैं और फिर वह खबरें आपको अपने से बेखबर कर देती हैं। अगर आम आदमी अपनी ये दो आदते सुधार लें तो पूरे समाज व देश की आबो-हवा को बदल सकती है।

14. किसी की अर्थी को सड़क से गुजरते हुए देखकर यह मत कहना कि बेचारा चल बसा अपितु उस अर्थी को देख कर सोचना कि एक दिन मेरी अर्थी भी इन्हीं रास्तों से यूं ही गुजर जाएगी और लोग सड़क के दोनों ओर खड़े होकर देखते रह जाएंगे। उस अर्थी से अपनी मृत्यु का बोध ले लेना क्योंकि दूसरों की मौत तुम्हारे लिए एक चुनौती है। अर्थी उठने से पहले जीवन का अर्थ समझ लेना, वरना बड़ा अनर्थ हो जाएगा। वैसे गधे को कभी नहीं लगता कि उसका जीवन व्यर्थ है।

15. अब संत-मुनियों को अपने प्रवचन साधारण जनता के बीच करने की अपेक्षा लोकसभा और विधानसभाओं में करनी चाहिए, क्योंकि खतरनाक लोग वहीं मौजूद है। मेरा विश्वास है अगर देश और प्रदेश की राजधानियों में बैठे करीब 90000 लोग सुधर जाए तो देश की सवा अरब जनता अपने आप और रातों-रात सुधर जाएगी। सुधार की प्रक्रिया नीचे से नहीं ऊपर से शुरू होनी चाहिए। क्योंकि भ्रष्टाचार की गंगोत्री ऊपर से नीचे की ओर बहती है। अगर ऋषिकेश में गंगा का शुद्धिकरण हो जाए तो हरिद्वार और उसके नीचे के तमाम घाट स्वत: शुद्ध होते चले जाएंगे।

16. दिल्ली का सफर करना हो तो कितनी तैयारी करते हो और मौत के लिए? मौत का सफर भी बड़ा लंबा है। इस सफ़र में अंधेरे रास्तों से गुजरना पड़ता है और रास्ते में दाएं बाएं मुडने के न कोई निशान होते हैं ना ही किसी मोड़ पर हरी लाल बत्ती जल रही होती है। इतना ही नहीं चीख-पुकार करने पर भी कोई सुनने वाला नहीं मिलता। यहां तुम्हारे घर में चाहे अन्य के भंडार भरे पड़े हो, पर वहां सफर में आटे की एक चुटकी भी साथ नहीं ले जा सकते। भीषण गर्मी में जान सूखती है, पर नीम का एक पत्ता तक सर ढकने को नहीं मिलता। संकट की इस घड़ी में सिर्फ भगवान का नाम ही सहारा होता है।

17. धर्म पगड़ी नहीं, जिसे घर से दुकान के लिए चले तो पहन लिया और दुकान पर जाकर उतारकर रख दिया। धर्म तो चमड़ी है, जिसे अपने से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म तो आत्मा का स्वभाव है। धर्म के माने प्रेम, करुणा और सद्भावना है। उसका प्रतीक फिर चाहे राम हो या  रहीम, बुद्ध हो या महावीर, कृष्णा हो या करीम, सब की आत्मा में धर्म की एक ही आवाज होगी। धर्म दीवार नहीं, द्वार है, लेकिन दीवार जब धर्म बन जाती है तो अन्याय और अत्याचार को खुलकर खेलने का अवसर मिल जाता है। फिर चाहे वह दीवार मंदिर की या मस्जिद की ही क्यों ना हो?

18. कोई धर्म बुरा नहीं है बल्कि सभी धर्मों में कुछ बुरे लोग जरूर हैं, जो अपने स्वार्थों के खातिर धर्म की आड़ में आकर अपने गोरखधंधे और नापाक इरादे जाहिर करते रहते हैं। अगर हम इन थोड़े से बुरे लोगों के दिलों को बदल सके, उन्हें सही राह पर चला सके और नेक इंसान बना कर जीना सिखा सके तो यकीनन सच मानिए ,यह पूरी पृथ्वी स्वर्ग में तब्दील हो जाएगी। धर्म मरहम नहीं बल्कि टानिक है। इसे बाहर मलना नहीं बल्कि पी जाना है। कितना बड़ा आश्चर्य है धर्म के लिए लड़ेंगे मरेंगे, लेकिन उसे जिएंगे नहीं।

19. भगवान के सामने दीप जलाओ तो इस बात का अहंकार मत करना कि मैंने दीप जलाया। अरे! तुम क्या दिल जलाओगे? भगवान के समक्ष कुदरती दो दीप जलता हैं। दिन में सूरज जलता है और रात में चंद्रमा जलता है। तुम्हारा दीप सूरज और चांद का मुकाबला तो नहीं कर सकता! तो फिर अहंकार क्यों? बस इतना ही विचार करना है कि हे प्रभु! मैं नदी के जल से सागर को पूज रहा हूं, दीप से सूरज की आरती कर रहा हूं। हे प्रभु! तेरा ही  तुझको अर्पण कर रहा हूं।

20. श्मशान गांव के बाहर नहीं, बल्कि शहर के बीच चौराहे पर होना चाहिए । श्मशान उस जगह होना चाहिए जहां से आदमी दिन में 10 बार गुजरता है ताकि जब- जब वह वहां से गुजरे तो वहां जलती लाशे और अधजले मुर्दों को देख कर उसे भी अपनी मृत्यु का ख्याल आ जाए और अगर ऐसा हुआ तो दुनिया के 70 फ़ीसदी पाप और अपराध शब्द खत्म हो जाएंगे। आज का आदमी भूल गया है कि कल उसे मर जाना है तुम कहते जरूर होगी एक दिन सभी को मर जाना है। तुम कहते जरूर होगी कि एक दिन मर जाना है, पर उन मरने वालों में तुम अपने आप को अपने को कहा गिनते हो?

21. आज विज्ञापन और मार्केटिंग का जमाना है। किसी दुकान का माल कितना ही अच्छा क्यों ना हो, यदि उसकी पैकिंग और विज्ञापन आकर्षित ना हो तो वह दुकान चलती नहीं है। जैन धर्म के पिछड़ेपन का कारण भी यही है। जैन धर्म के सिद्धांत तो अच्छे हैं, लेकिन उसकी पैकिंग और मार्केटिंग अच्छी नहीं है। अहिंसा एकांत और अपरिग्रह जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत पर आधारित जैन धर्म "जन धर्म" बनने की क्षमता रखता है, लेकिन उसका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार ना होने के कारण आज वह पिछड़ गया है।

22 आज जैन समाज के सामने अपने को शाकाहारी बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती है। महावीर के मोक्ष के बाद इन  2500 वर्षों में जैन समाज कई बार बटा है और बंटवारा कभी दिगंबर जैन-श्वेतांबर जैन के नाम से तो कभी तेरापंथी जैन-बीसपंथी जैन हुआ है। मगर अब जो बटवारा होगा, वह दिगंबर जैन- श्वेतांबर जैन और तेरापंथी जैन-बीसपंथी जैन, स्थानकवासी जैन और मंदिरमार्गी जैन जैसे नाम से नहीं होगा, बल्कि "शाकाहारी जैन" और "मांसाहारी जैन" के नाम से होगा। अगर ऐसा हुआ तो याद रखना, महावीर हमें कभी क्षमा नहीं करेंगे।

23. सत्य का रास्ता कठिन है। इस रास्ते पर हजार चलने की सोचते हैं, मगर सौ ही चल पाते हैं। 900 तो सोचकर ही रह जाते हैं और उनमे से केवल 10 ही पहूच पाते हैं; उनमें केवल दसवीं पहुंच पाते हैं 90 तो रास्ते में ही भटक जाते हैं तो घर पहुंचते हैं उनमें भी सिर्फ एक ही सत्य को उपलब्ध हो पाता है और फिर किनारे पर आ कर डूब जाते हैं तभी तो कहते हैं कि सत्य एक है और याद रखें सत्य परेशान तो हो सकता है लेकिन पराजित नहीं।



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